देवबंद, नदवा एवं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आतंकी संगठनों से सम्बन्धों के विषय में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को लिखा गया खुला-पत्र

माननीय योगी आदित्यनाथ जी
मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश शासन

प्रणाम,

महोदय, इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा एवं मानवता की रक्षा हेतु एक अतिगंभीर विषय की ओर आकर्षित करना चाहती हूँ l जैसा कि हम जानते हैं कि पिछले लगभग 30 वर्षों से उत्तर प्रदेश की धरती आपकी कर्मभूमि रही है तो निश्चित ही आप वहाँ मौजूद देवबंद और नदवा जैसे इस्लामी तालीम केन्द्रों के वैचारिक प्रवाह और गतिविधियों से भली-भाँति परिचित होंगे। यह अत्यंत खेदपूर्ण है कि अभी तक रही सभी सरकारों में ये दोनों संस्थाएँ तथा इनके जैसी कई अन्य संस्थाएँ भी धार्मिकता और विद्वत्ता के कपटी मुखौटे लगाकर फलती-फूलती रहीं जबकि इनकी सच्चाई बेहद भयावह है।

अतः हम आम जनता के बीच, दारुल उलूम, देवबंद और दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ के सबसे घातक वैश्विक आतंकी संगठनों के साथ घनिष्ठ संबंधों के विषय में, साथ ही साथ तालिबान जैसे नरसंहारी संगठन के मार्गदर्शक के रूप में इनकी प्रमुख भूमिका सम्बन्धी कुछ चौंकाने वाले तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैंl तथ्यात्मक एवं महत्वपूर्ण बिन्दुओं के साथ यह संक्षिप्त टिप्पणी (Note) देश और दुनिया में जिहादी आतंक को बढ़ावा देने में देवबंद और नदवा की भूमिका की गहन जाँच के लिए एक मजबूत आधार बनाती हैl अतः यह निवेदन है कि कृपया इस सम्बन्ध में अविलंब जाँच करायी जाए और दोषी पाए जाने पर दारुल उलूम, देवबंद एवं दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ को तत्काल बंद किया जाएl इसके साथ ही इन विषैले संगठनों द्वारा निर्मित प्रकाशन एवं साहित्यों पर भी प्रतिबंध लगाया जाए।

देश-विरोधी एवं असामाजिक तत्वों से निपटने के प्रति आपकी गंभीरता और तदनुसार आपके प्रशासन द्वारा त्वरित और दृढ़ कार्रवाई को देख हमें पूरी उम्मीद है कि आपकी सरकार इन मानवता के शत्रुओं से उचित तरह से निपटेगी।

ससम्मान

मधु पूर्णिमा किश्वर
संस्थापक मानुषी
वरिष्ठ अध्येता, नेहरू मेमोरियल संग्रहालय एवं पुस्तकालय;
राष्ट्रीय प्राध्यापक, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, 2017-2020
पूर्व प्रोफेसर, विकासशील समाज अध्ययन पीठ (CSDS)


टिप्पणी

दारुल उलूम (देवबंद)दारुल उलूम नदवतुल उलमा (लखनऊ) एवं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अल कायदाइसके पूर्व नेताओं ओसामा बिन लादेन और अयमान अल-जवाहिरीआईएसआईएसमुस्लिम वर्ल्ड लीग और पाकिस्तान में स्थित जिहादी आतंकवादी समूह के साथ प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष संबंधों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता

 

संक्षिप्त इतिहास: इस्लामिक मदरसे दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 1866-67 में मुहम्मद कासिम नानोत्वी, राशिद अहमद गंगोही, हाजी मुहम्मद आबिद एवं अन्य के द्वारा की गयी थी। इसे स्थापित करने का उद्देश्य इस्लाम की की तालीम एवं बड़े पैमाने पर ‘विशुद्ध’ इस्लामी सैनिक/योद्धा तैयार करना था। इसलिए, यह एक अलग ही गुप्त संगठन के रूप में काम करता है जिसमें भर्ती लोगों की मानसिकता को गैर-इस्लामी लोगों के खिलाफ़ अति-कट्टर बना दिया जाता है जो

जिन्हें काफिरों के रूप में निशाना बनाया गया, क्या वे ऐसे ऐतिहासिक तथ्यों को भूलने या अनदेखा करने का जोखिम कभी उठा सकते हैं? जैसे कि, देवबंदी शख्सियत ‘शाह वलीउल्लाह’ ने ‘अहमद शाह अब्दाली’ को विशुद्ध इस्लाम के पुनःस्थापन के लिये साथ मिलकर न केवल हिंदुओं, बल्कि सूफियों और शियाओं तक के भी कत्लेआम के लिए आमंत्रित किया था।

तालिबान से दारुल उलूम देवबंद की निकटता: काबुल सेंटर तथा इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (IDSA) के शोधकर्ताओं के अनुसार देवबंद, तालिबान का वैचारिक स्रोत है और उसने कई जिहादियों का मार्गदर्शन किया है:-

दारुल उलूम देवबंद तालिबान का भारतीय वैचारिक स्रोत है। जो तालिबान की इस्लामी व्याख्या है वह तालिबानियों ने पाकिस्तान में मौजूद देवबंदी मदरसों में पढ़ाई के दौरान ही सीखी। उदाहरण के लिएतालिबान के नेता मुल्ला उमर ने पाकिस्तान के पेशावर में अकोरा खट्टक के देवबंदी दारुल उलूम हक्कानिया मदरसे में तालीम ली। इसी स्कूल अथवा मदरसे में तालिबान के इतने नेताओं ने तालीम ली कि इस मदरसे के प्रमुख मौलवी मौलाना सामी उल हक को तालिबान का जनक कहा जाने लगा। (1)

दारुल उलूम देवबंद ने बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को विस्फोट कर उड़ाने का समर्थन किया: ‘इस्लामिक रेडिकलिज्म एंड मल्टीकल्चरल पॉलिटिक्स: द ब्रिटिश एक्सपीरियंस (2011)’ के लेखक ताहिर अब्बास लिखते हैं:-

1990 के दशक के मध्य सेदारुल उलूम (देवबंद) तालिबान का निरंतर समर्थक रहा है। मार्च 2001 में जब तालिबान ने बामयान की 1,500 साल पुरानी बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट कियातब दारुल उलूम ने इस कृत्य का समर्थन किया। (2)

देवबंद द्वारा अफ़गानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े का यशःख्यापन: दारुल उलूम देवबंद के मुखिया अरशद मदनी ने भी अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद इसकी बहुत प्रशंसा की थी। उन्हीं के शब्दों में:-

अगर तालिबान आतंकवादी हैं तो गांधीनेहरू भी आतंकवादी थे। (3)

वैश्विक जिहाद हेतु एक प्रमुख संस्था के रूप में देवबंद: पेशावर से चटगाँव तक, देवबंदी मदरसा संगठन ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और उसके बाहर अपने शैतानी जाल फैलाए हुए हैं। यह वैश्विक जिहाद हेतु गैर-मुसलमानों पर हिंसा के लिए दुनिया भर के मुसलमानों को तैयार करने में अग्रणी संगठनों में से एक है। पिछले कुछ दशकों में, ऐसी सैकड़ों खबरें आई हैं कि देवबंद ने इस्लामी आतंकवाद के बर्बर स्वरूप को बढ़ावा देने हेतु युवाओं को तैयार करने के लिए एक उपजाऊ भूमि की तरह कार्य किया हैl इस बात के अनेकों उदाहरण हैं कि यह देवबंद कैसे आतंकवादी विचारधाराओं और संगठनों का निर्यात करता रहा हैl

मौलाना असीम उमरभारतीय उप-महाद्वीप का अल कायदा प्रमुख (एक्यूआईएस) देवबंदी ही था: इसे 2019 में अफगानिस्तान में कथित तौर पर मार दिया गया था। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट इसके बारे में एक सटीक विवरण प्रदान करती है:-

यूपी के संभल का रहने वाला उमर देवबंद के दारुल-उलूम का छात्र थाl इसने 1995 में आतंकी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन में शामिल होने के लिए भारत छोड़ दिया और पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रहा। इसने जिहादी साहित्य का पश्तो से उर्दू भाषा में अनुवाद किया और कम से कम चार किताबें लिखीं जो जिहाद पर इसके विचारों को दर्शाती हैं। अल-कायदा में इसका बढ़ता कद तब स्पष्ट हुआ जब इसे पाँच साल पहले अल-कायदा कमांडर अयमान अल-जवाहिरी द्वारा एक्यूआईएस (AQIS) प्रमुख नामित किया गया था।

एक्यूआईएस प्रमुख बनने के बादउमर ने देवबंद में अपने संपर्कों का इस्तेमाल अकीस बेस (Aqis base) स्थापित करने के लिए किया। कराची के जामिया उलूम-ए-इस्लामिया और खैबर पख्तूनख्वा के दारुल उलूम हक्कानिया में अपने कार्यकाल के दौरान इसे तालिबानअल-कायदाटीटीपीजैश और ऐसे ही अन्य समूहों के वरिष्ठ नेताओं के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में मदद मिली। भारतीय काउंटर-इंटेलिजेंस अधिकारियों ने कहा कि इसके वक्तृत्व कौशल और जिहादी साहित्य की समझ इसे अलकायदा के शीर्ष नेतृत्व के करीब ले गई। (4)

भागे हुए आतंकवादियों के लिए देवबंद एक नियमित शरणस्थली रहा है: जिहादियों द्वारा आतंकवादी हमले करने के बाद देवबंद में आश्रय लेने के अनगिनत उदाहरण हैं। उनमें से एक घटना टाइम्स ऑफ इंडिया की 2017 की रिपोर्ट से यहाँ उद्धृत करते है:-

इस खुलासे का आधार यूपी पुलिस के आतंकवाद-रोधी दस्ते द्वारा तैयार की गई पूछताछ-रिपोर्ट हैजिसने पिछले 10 हफ्तों में बांग्लादेश स्थित आतंकी मॉड्यूल से जुड़े चार अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को गिरफ्तार किया है। चारों ने सहारनपुर में शरण ली थी और देवबंद में रह रहे थेजो इस्लामिक शिक्षा का उच्चतम केंद्र है जहाँ विभिन्न देशों के मुस्लिम अध्येता तालीम के लिये आते हैं। (5)

इस्लामिक देश तो आत्मघाती बम धमाकों की निंदा करते हैं लेकिन दारुल उलूम देवबंद नहीं: दारुल उलूम देवबंद की वैचारिक प्रवृत्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसने कभी भी आत्मघाती बम धमाकों के खिलाफ फतवा जारी नहीं किया। एस. अरशद के एक लेखानुसार:-

हैरानी की बात है कि आत्मघाती बम विस्फोटों के बारे में पूछे जाने परदारुल इफ्ता के मुफ्ती ने अपना फतवा देने से इनकार कर दिया थाहालाँकि पूरी इस्लामी दुनिया ने कुरान और सुन्नत के आधार पर आत्मघाती बम विस्फोटों को हराम और अनुचित घोषित किया है। पाकिस्तान के एक व्यक्ति ने 23 मई, 2007 में निम्नलिखित प्रश्न पूछा था: मैं जिहाद पर एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि गैर-मुस्लिम सेना पर आत्मघाती हमले करना कितना जायज है?” इसे कुरान की आयतों और हदीसों के आधार पर हराम घोषित कर सीधा जवाब देने के बजायदारुल इफ्ता के मुफ्ती ने इस सवाल को यह कहते हुए टाल दिया, “कृपया इस मुद्दे पर अपने देश के उलेमा से सलाह लें”। इसे दारुल इफ्ता की ओर से एक बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि इसने आत्मघाती बम विस्फोट के बारे में एक पाकिस्तानी युवक की गलतफहमी को दूर नहीं किया। (6)

देवबंदी राष्ट्रों या देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं की शुचिता स्वीकार नहीं करते: देवबंदियों ने अल-तकिया (इस्लाम के प्रचार-प्रसार, पालन अथवा बचाव हेतु किसी भी प्रकार के झूठ, माँफी, विश्वासघात इत्यादि की अनुमति से सम्बंधित सिद्धांत/नीति) के तहत भारत के प्रति अपने “राष्ट्रवाद” और “देशभक्ति” का दिखावा कर 1947 में विभाजन का विरोध किया था। इनकी कपटता इसी से स्पष्ट हो जाती है कि ये जिस विशुद्ध इस्लाम का समर्थन करते हैं, वह तो राष्ट्र-राज्यों की सीमाओं जैसी किसी चीज़ को मानता ही नहीं है। “अच्छे मुसलमान” केवल वैश्विक उम्मा (Global Islamic Brotherhood) के इस्लामी सिद्धांत में विश्वास करते हैं जबकि जिन्ना का उद्देश्य तो भारत को विभाजित कर मुसलमानों के लिए एक अलग मातृभूमि हासिल करना थाl देवबंदियों की दृष्टि में जिन्ना का उपमहाद्वीप के एक हिस्से मात्र को लेकर संतुष्ट होना बहुत ही तुच्छ बात थी, क्योंकि वे आज भी पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को दारूल इस्लाम में बदलने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

ऐसा विश्वास अथवा मानसिकता जो भारत के अधिकार क्षेत्र को अथवा इसको एक राष्ट्र के रूप में स्वीकार करने से इनकार करते हैं, देश के लिए विशेष रूप से खतरनाक हैं क्योंकि हमारा देश जिहादी विचारधारा वाले शत्रुओं से घिरा हुआ है। टुकड़े-टुकड़े गैंग के नारे एवं भारत के टुकड़े कर इस्लामीकरण करने की धमकी देवबंदी विचारधारा की ही उपज है।

भारत के विभाजन के संबंध में दारुल उलूम देवबंद के तत्कालीन प्रधानाचार्य एवं जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना हुसैन अहमद मदनी (1879-1957) के विचारों को भारत के सूचना आयुक्त उदय माहूरकर ने उद्धृत किया है:

लेखक जे. एच. फारूकी ने अपनी पुस्तक द देवबंद स्कूल एंड द डिमांड फॉर पाकिस्तान और बाद में सुधारवादी नेता हामिद दलवई ने अपनी पुस्तक ‘मुस्लिम पॉलिटिक्स इन सेक्युलर इंडिया में लिखा है कि देवबंदी नेता मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने 1945 में दिल्ली में जमीयत-ए-उलेमा-हिंद सम्मेलन के दौरान भाषण में पाकिस्तान के गठन का विरोध करते हुए कहा कि “ये गैर-मुसलमान तो इस्लाम की तब्लीग (प्रसार और मत-परिवर्तन) जैसे उत्तम कार्य हेतु कार्यक्षेत्र अथवा क्रियान्वयन क्षेत्र हैं अर्थात गैर-मुसलमान इस्लाम को बढ़ाने के लिए कच्चे-माल/संसाधन जैसे हैं। हम इस्लाम के इस अधिकार को एक क्षेत्र विशेष (मुसलमानों के लिये पाकिस्तान की मांग) तक सिमित किये जाने का विरोध करते हैंl”

एक अन्य अवसर पर मदनी ने और निर्भीकता से कहा था: “यदि दारा शिकोह औरंगजेब पर विजय प्राप्त करतातब मुसलमान तो भारत में रहतेलेकिन इस्लाम नहीं। चूँकि औरंगजेब की जीत हुई इसीलिए मुसलमान और इस्लाम दोनों यहाँ मौजूद हैं।”

जैसा कि उपरोक्त बयानों से संकेत मिलता है कि यह देवबंदी उपदेशक एवं जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद नेता मदनी एक अखिल-इस्लामवादी सोंच का व्यक्ति थाl चूँकि देवबंदियों के एक महत्वपूर्ण वर्ग ने विभाजन का विरोध किया और विशुद्ध इस्लाम के हितों की रक्षा के लिए अपनी दीर्घकालिक मज़हबी रणनीति के तहत कांग्रेस के नेतृत्व वाले स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया तो इस मदनी को भी इतिहास की किताबों में एक राष्ट्रवादी के रूप में बताया गया। यह भारत विभाजन के बाद के इतिहास की मुख्य त्रासदियों में से एक है। (7)

यह वास्तव में दुखद है कि वामपंथी-इस्लामी जुगलबंदी ने हमारे इतिहास को विकृत कर दिया और देवबंदियों को राष्ट्रवाद के रंग में रंगकर भारत के लोगों को गुमराह किया।

हमारे पड़ोसी देशों से भारत को निशाना बनाने वाले आतंकवादी संगठन अखिल-इस्लामी अथवा वैश्विक उम्माह (मुस्लिम भाईचारा) के सिद्धांत का उपयोग कर “भारत को 1000 जगह से काट, घाव देकर मौत के घाट उतारने” के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं। विडंबना यह है कि देवबंद से प्रेरित आतंकवादी संगठन पाकिस्तान से भी खुश नहीं हैं क्योंकि वह अपने को एक राष्ट्र के तौर पर प्रस्तुत करता है जबकि इस्लाम में राष्ट्र की अवधारणा ही नहीं हैl हालाँकि यह पाकिस्तान जिहादी इस्लाम के प्रसार और आतंकवादी कृत्यों के लिए एक प्रमोचनपथ (Launchpad) से ज़्यादा कुछ है भी नहीं लेकिन उन्हें इसका ऐसा स्वरुप भी स्वीकार नहीं। उन्हें राष्ट्र जैसी कोई अवधारणा चाहिये ही नहींl

अंतर्राष्ट्रीय मीडिया आयदिन अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा/डूरण्ड-रेखा पर अफगान-तालिबान तथा पाकिस्तानी-सीमाबलों के बीच दैनिक झड़पों की सूचना देता ही रहता है। अनुभवी विश्लेषकों के अनुसार, ऐसा इसलिए है क्योंकि अफगान-तालिबान और सीमा पार इसकी सहबद्ध तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), दोनों अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान को एक निजाम-ए-मुस्तफा (आदर्शवादी इस्लामी कानून द्वारा शासित भूमि) मानते हैं और पाकिस्तान की लोकतांत्रिक ढोंग के साथ एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में दिखने या गिने जाने की किसी भी प्रकार की महत्वकांक्षा के सख्त खिलाफ़ हैं।

इस्लामी तालीम केंद्र देवबंद एवं नदवा हेतु वैश्विक आतंकवादी संगठनों के बीच संपर्क और समर्थन: आदरणीय योगी जी, आपके द्वारा पहले ही इस्लामी मदरसे देवबंद के पास सुरक्षा बलों को तैनात कर नजर रखने के लिए अभूतपूर्व उपाय किये गए हैं। अगर देवबंद सिर्फ एक शैक्षिक संस्थान होता तो क्या भला ऐसा करने की जरूरत पड़ती?

यहाँ सऊदी अरब और पाकिस्तान के उत्तर प्रदेश के इन केन्द्रों से जुड़े तारों का विश्लेषण बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है, उपलब्ध तथ्यों के आधार पर क्रमशः इन्हीं कड़ियों पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे:-

ओसामा बिन लादेन के साथ मुस्लिम वर्ल्ड लीग के सम्बन्ध: संयुक्त राज्य अमरीका की गृह समिति के अंतर्गत बनी ‘निगरानी एवं जाँच वित्तीय सेवा उप-समिति’ के समक्ष मैथ्यू एपस्टीन के साथ इवान कोहलमैन की गवाही के अनुसार: 9/11 के बाद से प्रगति: यू.एस. आतंकवाद विरोधी वित्तपोषण प्रयासों की प्रभावशीलता (Progress Since 9/11: The Effectiveness of U.S. Anti-Terrorist Financing Efforts) :-

लगभग 1993 मेंअल-कायदा के पूर्व वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जमाल अहमद अल-फदल के साथ बातचीत में, ओसामा बिन लादेन ने अल-कायदा की वित्तीय और धन उगाहने वाली गतिविधियों के प्राथमिक स्रोतों के रूप में तीन दान देने वाली मुस्लिम संस्थाओं का उल्लेख किया:-

1. मुस्लिम वर्ल्ड लीग, “MWL” (अल-रबीता अल-अलामी अल-इस्लामिया)

2. बेनेवोलेंस इंटरनेशनल फाउंडेशन, “BIF” (लज्नत अल-बिर अल-दवलिया/लज्नत अल-बिर अल-इस्लामिया)

3. कतर चैरिटेबल सोसाइटी, “QCS” (जमात कतर हीरा)

इन तीन संगठनों ने अरब-अफगान आतंकी ढाँचे में ओसामा बिन लादेन और अरब की खाड़ी में इसके हमदर्दों के बैंक खातों से प्राप्त धन को वैध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईदुनिया भर में अल-कायदा कर्मियों को रोजगार और यात्रा-दस्तावेज प्रदान कराए और उन क्षेत्रों में भी धन भेजा जहाँ अलकायदा की गतिविधियों का संचालन हो रहा था। (8)

सऊदी अरब स्थित मुस्लिम वर्ल्ड लीगसऊदी शाही परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित एक नामित आतंकवादी संगठन है: 23 सितंबर, 2001 को, 9/11 के हमलों के तुरंत बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने एक अधिशासी आदेश (संख्या 13224) जारी किया था जिसके तहत आतंकवादी संपत्ति पर प्रतिबन्ध लगाया गया तथा आतंकवाद प्रतिबंध  विनियम(यू.एस. संघीय विनियमों की संहिता का शीर्षक 31 भाग 595), आतंकवाद सूची सम्बंधित सरकार प्रतिबंध विनियम (यू.एस. संघीय विनियमों की संहिता का शीर्षक 31 भाग 596), एवं विदेशी आतंकवादी संगठन प्रतिबंध विनियम (यू.एस. संघीय विनियमों की संहिता का शीर्षक 31 भाग 597) का विवरण प्रस्तुत किया गया। 3 अगस्त, 2006 को इसी अधिशासी आदेश के तहत मुस्लिम वर्ल्ड लीग को एक आतंकी संगठन के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। (9) उसी दिन, अमेरिकी निधि (Treasury) विभाग ने मुस्लिम वर्ल्ड लीग को अल-कायदा से संबद्ध आतंकी संगठन के रूप में भी नामित किया था। (10)

हालाँकि यह स्तब्ध करने वाला निर्णय रहा कि अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने 16 अगस्त, 2016 के दिन मुस्लिम वर्ल्ड लीग को नामित आतंकी संगठनों की सूची से हटा दिया। (11) लेकिन अमरीका के इस तरह के यू-टर्न अमरीकी नेतृत्व के पीड़ित लोगों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि यह पता ही है कि अमेरिका में डीप स्टेट (Deep state bureaucracy) तालिबान जैसे कई आतंकी संगठनों को अपनी ‘गहरी अथवा गुप्त रणनीति’ के तहत पोषित करता रहा है।

इसीलिए अमेरिकी सरकार इस्लामी तानाशाहों के साथ-साथ आतंकी संगठनों का समर्थन करने के लिए अपने आंतरिक खींचतान और दबावों से त्रस्त हो जाती है और अपने ही द्वारा निर्मित व पोषित इन संगठनों के साथ “जेकिल और हाइड’ खेलती रहती है। हालांकि, भारत के लिये यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि मुस्लिम वर्ल्ड लीग 3 अगस्त, 2006 से 16 अगस्त, 2016 तक 10 वर्षों से भी अधिक एक अमरीका द्वारा नामित आतंकी संगठन बना रहा।

दारुल उलूम देवबंद और मौलाना अरशद मदनी के मुस्लिम वर्ल्ड लीग से सम्बन्ध: ‘मौलाना अरशद मदनी’ जो कि वर्तमान में दारुल उलूम देवबंद के प्रधानाचार्य, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष एवं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष हैंl वर्ष 2012 की बात है जब यह दारुल उलूम देवबंद में हदीस के प्रोफेसर हुआ करते थे, उस समय इन्होंने बड़ी शेखी के साथ अपनी नियुक्ति मुस्लिम वर्ल्ड लीग के सदस्य के रूप होने की घोषणा अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर की थीl (12) जबकि मुस्लिम विश्व लीग उस समय एक नामित ‘आतंकी संगठन’ था। 6 जून, 2012 को, एक देवबंदी वेबसाइट ने मौलाना अरशद मदनी की मुस्लिम वर्ल्ड लीग के सदस्य के रूप में नियुक्ति के बारे में खबर भी प्रकाशित की थी। (13)

इस प्रकार, चार वर्षों से अधिक समय तक, दारुल उलूम देवबंद के प्रधानाचार्य और जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी मुस्लिम वर्ल्ड लीग के सदस्य थे जो कि एक नामांकित वैश्विक ‘आतंकी संगठन’ था।

मुस्लिम वर्ल्ड लीग सऊदी शाही परिवार के संरक्षण में चलाई जाती है। 2014 में, सऊदी अरब के इस्लामी मामलों के मंत्री सालेह अल ऐश-शेख ने दारुल उलूम देवबंद का दौरा कियाl यहाँ के छात्रों और संकाय सदस्यों द्वारा इनके सम्मान में आयोजित एक समारोह के दौरान इन्होंने दारुल उलूम देवबंद के साथ मिलकर काम करने का संकल्प भी लिया था। (14)

नदवतुल उलमा का मुस्लिम वर्ल्ड लीग और इस्लामिक स्टेट (ISIS) के साथ संबंध: एक देवबंदी वेबसाइट (13) ने दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ के अध्यक्ष एवं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के अध्यक्ष ‘मौलाना मुहम्मद राबे नदवी’ की वर्ष 2012 से पहले मुस्लिम वर्ल्ड लीग के सदस्य के रूप में नियुक्ति की खबर प्रकाशित की थी। उस समय भी यह अंतर्राष्ट्रीय ‘आतंकवादी संगठन’  के रूप में नामित था।

दारूल उलूम नदवतुल उलमा लखनऊ

जब आईएसआईएस (ISIS) प्रमुख खूँखार आतंकवादी अबू बक्र अल-बगदादी बगदादी ने जुलाई 2014 में मोसुल की विशाल मस्जिद में एक इस्लामिक राज्य के निर्माण की घोषणा की और खुद को इसका खलीफा बताया, तब मौलाना मुहम्मद रबे नदवी के भतीजे ‘मौलाना सलमान हुसैनी नदवी’ ने और दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ के तत्कालीन अधिष्ठाता ने उसको बधाई देते हुए एक पत्र लिखा जिसमें उसे मुसलमानों का खलीफ़ा बताकर उसकी बहुत प्रशंसा की l (15)

जमीयत उलमा-ए-हिंद का अल-कायदा के साथ संबंध: वैश्विक आतंकी संगठनों से संबंधों के अलावा भी यह देवबंद भारत की संप्रभुता और उसके कानूनों की अवहेलना करने के लिए छोटे से छोटे मुद्दे पर भी बल्कि सच कहें तो न होने पर भी ज़बरदस्ती मुद्दे नियोजित करके मुसलमानों को उकसाने का कोई अवसर नहीं छोड़ता है, चाहें फ़िर वह शाजिशन रचा हुआ सीएए (CAA) के खिलाफ़ आन्दोलन हो या कृषि कानूनों के विरोध में या स्कूल यूनिफॉर्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो, सब के सब ऐसे ही संस्थानों द्वारा नियोजित एवं प्रायोजित थे। उदाहरण के लिए, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने बुर्का-हिजाब के प्रति जोरशोर अपना समर्थन दिखाने वाली मुस्कान खान नाम की लड़की को 5 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की क्योंकि इस लड़की ने कर्नाटक सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा छात्रों के लिए स्कूल/कॉलेज वर्दी की अनिवार्यता सम्बन्धी अधिसूचना के ख़िलाफ़ ज़ोरदार आवाज़ में प्रदर्शन किया था, इस अधिसूचना के तहत शिक्षण संस्थानों में बुर्का-हिजाब-नकाब भी प्रतिबंधित थाl (16) इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर इस लड़की की तस्वीरों की बाढ़ सी आ गई जिनमें इसे दैनिक जीवन में अत्यंत आधुनिक वस्त्रों में देखा गया और तभी इस सारे षड़यंत्र की पोल खुल गयी l यह जो बुर्का-हिजाब के समर्थन में प्रदर्शन किये गए, सब इन देवबंदियों द्वारा नियोजित एवं प्रायोजित नौटंकी थीl अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करने के लिये इसे मुद्दा बनाया गया था ताकि दुनिया कहे कि “हिंदू बाहुल्य” भारत में मुस्लिम महिलाओं को उनकी धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित किया जा रहा है। हमने देखा कि इस नौटंकी की सफलता से उत्साहित होकर, आतंकी संगठन अल-कायदा के तत्कालीन मुखिया अयमान अल-जवाहिरी ने मुस्कान खान का उत्साहवर्धन करने के लिये कविता भी पढ़ी थी। (17)

पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों के साथ मदनियों के वित्तीय संबंध: चाचा-भतीजे ‘मौलाना अरशद मदनी’ और ‘मौलाना महमूद मदनी’, कई उन्मादी इस्लामी संगठनों से जुड़े हैं, लेकिन दो सबसे उल्लेखनीय हैं: जमीयत उलेमा-ए-हिन्द और शेखुल हिंद एजुकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट।

विदेशी योगदान की त्रैमासिक प्राप्ति का विवरण संस्था का नाम: जमीयत उलेमा-ए-हिन्द एफसीआरए (FCRA) पंजीकरण संख्या: 231650694 संस्था का पता: 01, बी. एस. ज़ेड. मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली, दिल्ली – 110 002 वित्त वर्ष: 2020-2021त्रिमास: जनवरी, 2021 – मार्च, 2021इस तिमाही में कुल धनराशि प्राप्त हुई: 8588758.00
क्रम सं. दानकर्ता का नाम संस्था / वैयक्तिक दानकर्ता का विवरण:कार्यालय का पता:ई-मेल पता:वेबसाइट पता: प्राप्ति का उद्देश्य राशि (रू.)
1. जमीयत उलेमा-ए-हिन्द यूके लिमिटेड संस्था 20, किंग्सवे रोड, एविंगटन लिसेस्टर, एलई5, 5वाँ यूके, यूनाइटेड किंगडम, ई-मेल आईडी:, वेबसाइट एड्रेस: सामाजिक 8588758.00

उपरोक्त: जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के एफसीआरए अभिलेख का प्रतिरूप

विदेशी योगदान की त्रैमासिक प्राप्ति का विवरण संस्था का नाम: शेखुल हिंद एजुकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट एफसीआरए (FCRA) पंजीकरण संख्या: 231661159 संस्था का पता: नं. 1, बहादुर शाह ज़फर मार्ग, नई दिल्ली, दिल्ली – 110 002 वित्त वर्ष: 2020-2021त्रिमास: जनवरी, 2021 – मार्च, 2021इस तिमाही में कुल धनराशि प्राप्त हुई: 22053748.00
क्रम सं. दानकर्ता का नाम संस्था / वैयक्तिक दानकर्ता का विवरण:कार्यालय का पता:ई-मेल पता:वेबसाइट पता: प्राप्ति का उद्देश्य राशि (रू.)
1. द शेड ट्रस्ट संस्था 74, डार्ली स्ट्रीट लिसेस्टर, एलई20जीए, यूके, यूनाइटेड किंगडम, ई-मेल आईडी:, वेबसाइट एड्रेस: सामाजिक 22053748.00

उपरोक्त: शेखुल हिंद एजुकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट के एफसीआरए अभिलेख का प्रतिरूप

इन दोनों को विदेशी स्रोतों से करोड़ों रुपये मिलते रहे हैं। विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम [FCRA] रिकॉर्ड के अनुसार, जमीयत उलमा-ए-हिंद यूके लिमिटेड द्वारा जमीयत उलमा-ए-हिंद को नियमित रूप से दान दिया जाता रहा है एवं इंग्लैंड तथा वेल्स के चैरिटी आयोग के अभिलेखानुसार यह पाकिस्तान में भी काम कर रहा है। (18)

यू. एस. हाउस कमेटी के अंतर्गत बनी निगरानी और जांच वित्तीय सेवा उपसमिति के समक्ष इवान कोहलमैन व मैथ्यू एपस्टीन की गवाही: 9/11 के बाद से प्रगति: अमेरिका के आतंकवाद विरोधी वित्तपोषण प्रयासों की प्रभावशीलता (Progress Since 9/11: The Effectiveness of U.S. Anti-Terrorist Financing Efforts), इसमें पाकिस्तान स्थित मुस्लिम वर्ल्ड लीग के कार्यालय का आतंकी हमलों के प्रमोचन हेतु इस्तेमाल से सम्बंधित खुलासा हुआ था:-

जब सोवियत-अफगान-जिहाद की शुरुआत हुई थी तभी से इंटरनेशनल इस्लामिक रिलीफ़ आर्गेनाइजेशन (IIRO) ने मुस्लिम वर्ल्ड लीग को अरब-अफगान-आतंकवादियों  को गुप्त सैन्य एवं वित्तीय मदद देने के लिए मज़बूत करना शुरू कर दिया था।

अमेरिकी के आतंकवाद-निरोधी जाँचकर्ताओं के दल को बोस्निया-हर्जेगोविना से बरामद अल-कायदा के दस्तावेजों में एमडब्ल्यूएल/आईआईआरओ के लेटरहेड पर लिखा एक पत्र मिला । 80 के दशक के बाद के वर्षों के दौरान लिखे इस पत्र में एक बैठक का सारांश है जो कि अल-कायदा के नेताओं और मुस्लिम धर्मार्थ संगठनों (जो ज़कात के धन की व्यवस्था करते हैं) के प्रतिनिधियों के बीच हुई जिसमें यह तय हुआ कि हमले पाकिस्तान स्थित एमडब्ल्यूएल कार्यालयों से शुरू किये जाएंगे। (8)

क्या ‘जमीयत उलमा-ए-हिंद’ की गतिविधियाँ और इसे मिलने वाली मदद एवं इन दोनों चाचा-भतीजे ‘मौलाना अरशद मदनी’ और ‘मौलाना महमूद मदनी’ के तार पाकिस्तान में स्थित आतंकवादियों और आतंकी संगठनों से जुड़े हैं ? यह निश्चित ही एक सघन-जाँच का विषय हैl

लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष भारत, इस्लामी-फासीवादी संगठनों को अपनी धरती पर क्यों पनपने दे रहा है? मज़हबी चरमपंथ की विचारधारा का बीजारोपण कर उसे पोषित करने वाले, देश के लिए नासूर बन चुके ‘दारुल उलूम, देवबंद’ और ‘दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ’ जैसे आसुरी संगठनों को यह देश आख़िर कैसे अपनी लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष धरती पर फलने-फूलने की अनुमति दे सकता है? यह सर्वविदित है कि ये संगठन अपने दारूल इस्लाम (वह भूमि जहाँ केवल इस्लाम का शासन होता है) जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा के बर्बर तरीकों तक का समर्थन करते हैं और भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं शेष इस्लामी दुनिया के घोषित आतंकवादी संगठनों के साथ प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से संबंध रखते हैं। ऐसे संगठनों की भयंकर मज़हबी मानसिकता के कारण ही 1947 में भारत का खूनी विभाजन हुआ, ऐसे नरसंहार के बाद भी इन पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, हमारे शासकों ने इन देश तोड़ने वाले संगठनों को अपनी धरती पर अनगिनत छोटे-छोटे पाकिस्तान स्थापित करने की अनुमति दे दी।

आज नतीजा यह है कि ये इस्लामिक संगठन खुले तौर पर घोषणा कर रहे हैं कि इनके पास 2047 तक पूरे भारत को दारूल इस्लाम में बदलने की योजना है। इन संगठनों के इस खतरनाक खेल की तेज और अनियंत्रित गति का मूक गवाह बनकर अब और अधिक नहीं रहा जा सकता है। अतः आपसे अनुरोध है कि दारुल उलूम, देवबंद एवं दारुल उलूम नदवतुल उलेमा, लखनऊ की गतिविधियों की तत्काल जाँच शुरू कराएँ एवं देश की सुरक्षा हेतु इन धूर्त एवं राष्ट्रविरोधी संस्थानों को तुरंत बंद कराएँ।

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